Rangnath Ji Mandir Vrindavan 2024

Rangnath Ji Mandir Vrindavan

Rangnath Ji Mandir Vrindavan

Rangnath Ji Mandir Vrindavan, जिसे रंगनाथ जी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृन्दावन शहर में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण सेठ लख्मीचंद के भाई सेठ गोविंददास और राधाकृष्ण दास ने भगवान रंगनाथ या रंगजी, जो श्री संप्रदाय के संस्थापक रामानुजाचार्य के विष्णु रूप हैं, के सम्मान में किया था। इसे बनाने के लिए उन्होंने अपने सम्मानित शिक्षक स्वामी रंगाचार्य द्वारा प्रदान किए गए मद्रास के रंगनाथ मंदिर के मानचित्र का उपयोग किया। मंदिर की लागत लगभग पैंतालीस लाख रुपये है।

Rangnath Ji Mandir Vrindavan की स्थापत्य कला :-

Rangnath Ji Mandir Vrindavan

रंगजी मंदिर की बाहरी दीवार 773 फीट लंबी और 440 फीट चौड़ी है। मंदिर के अलावा पास में एक खूबसूरत झील और बगीचा भी है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक ऊंचा गोपुर है। भगवान रंगनाथ के सामने एक तांबे का ध्वज स्तंभ है जो 60 फीट ऊंचा है और लगभग 20 फीट जमीन के अंदर दबा हुआ है। सिर्फ इस स्तंभ को बनाने में दस हजार रुपये का खर्च आया। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार एक मंडप से ढका हुआ है जो 93 फीट ऊंचा है और इसमें मथुरा शैली है। वहां से कुछ ही दूरी पर एक छत युक्त भवन है, जहां भगवान का रथ रखा हुआ है। यह रथ लकड़ी से बना है और बहुत बड़ा है। इसे वर्ष में केवल एक बार चैत्र में ‘ब्रह्मोत्सव’ के दौरान निकाला जाता है।

Rangnath Ji Mandir Vrindavan :- यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिनों तक चलता है। हर दिन, भगवान एक रथ में मंदिर से निकलते हैं और लगभग 690 गज की यात्रा करके रंगजी के बगीचे तक जाते हैं। वहां स्वागत समारोह के लिए संगीत, अगरबत्ती और मशालों के साथ एक मंच तैयार किया गया है। रथ के उपयोग के पहले दिन, मध्य में अष्टधातु से बनी एक मूर्ति रखी जाती है, जिसके दोनों ओर चौधारी ब्राह्मण होते हैं। सेठ लोगों सहित भीड़ भी इसमें शामिल हो जाती है और रथ को खींचने में मदद करती है। इस दूरी को तय करने में लगभग ढाई घंटे का समय लगता है, जिसमें सभी को काफी मेहनत करनी पड़ती है। अगले दिन शाम को, शानदार आतिशबाजी का प्रदर्शन होता है, जो आस-पास के क्षेत्रों से पर्यटकों को आकर्षित करता है। अन्य दिनों में जब रथ का उपयोग नहीं किया जाता है, तो भगवान की यात्रा के लिए विभिन्न वाहन होते हैं, जैसे कि रत्नजड़ित पालकी, पुण्य कोठी, सिंहासन, कदंब, या कल्पवृक्ष। कभी-कभी, सूर्य, गरुड़, हनुमान या शेषनाग जैसे देवताओं का उपयोग वाहन के रूप में किया जाता है। ऐसे भी समय होते हैं जब घोड़े, हाथी, शेर, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे जानवरों का उपयोग किया जाता है।

Rangnath Ji Mandir Vrindavan का इतिहास और वास्तुकला :-

इस अद्भुत मंदिर को सेठ गोबिंद दास और राधा कृष्ण नाम के दो भाइयों ने बनवाया था। स्वामी रंगाचार्य नामक एक बुद्धिमान शिक्षक ने उनकी मदद की। उन्होंने 1845 में मंदिर का निर्माण शुरू किया और 1851 में इसे पूरा किया। इसे पूरा करने में 6 साल लगे और 45 लाख रुपये की लागत आई।

श्री रंगजी मंदिर को श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर नामक प्रसिद्ध मंदिर की तरह बनाया गया है। इसमें दक्षिण और उत्तर भारत दोनों के मंदिरों की शैलियों का मिश्रण है। मंदिर के मुख्य भाग के चारों ओर पाँच आयताकार स्थान हैं, और इसके पूर्व और पश्चिम की ओर दो सुंदर पत्थर के द्वार हैं।

मंदिर के पश्चिमी तरफ के गेट के ठीक बाहर, एक बहुत ऊँचा लकड़ी का रथ है जिसका उपयोग वर्ष में केवल एक बार किसी विशेष उत्सव के दौरान किया जाता है। जब आप पत्थर के गेट से गुज़रते हैं, तो आप एक बहुत बड़ी सात मंजिला इमारत देख सकते हैं जिसे गोपुरम कहा जाता है। गोपुरम के किनारों पर ऐसी तस्वीरें हैं जो दो महत्वपूर्ण देवताओं, भगवान राम और भगवान कृष्ण के बारे में कहानियाँ बताती हैं। मंदिर के दूसरी ओर, एक और इमारत है जिसे गोपुरम कहा जाता है, लेकिन यह पांच मंजिल ऊंची है। दोनों गोपुरमों के बीच में एक बड़ा तालाब है जिसे “पुष्कर्णी” कहा जाता है। बगीचे के बगल में एक स्थान है जहाँ श्रीनाथ रंगाचार्यजी महाराज नामक एक महत्वपूर्ण व्यक्ति रहते हैं। मंदिर में काम करने वाले अन्य महत्वपूर्ण लोगों के लिए भी घर हैं। आप दोनों द्वारों से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन पूर्वी तरफ वाला मुख्य द्वार है। मंदिर के अंदर एक रसोईघर, भगवान राम और भगवान रंगनाथ की मूर्तियाँ, एक विशेष दरवाजा है जो साल में केवल एक बार खुलता है, और एक जगह है जहाँ त्योहारों के लिए विशेष चीजें रखी जाती हैं। यहां दुकानें और घंटाघर भी हैं। यदि आप दूसरे द्वार से गुजरें, तो आपको एक बहुत ऊंचा स्तंभ मिलेगा जो सोने से ढका हुआ है, जिसे “ध्वज स्तंभ” कहा जाता है। यदि आप एक घेरे में घूमते रहें, तो आपको एक विशेष कमरा दिखाई देगा जहाँ भगवान गोदा एक उत्सव के दौरान रहते हैं, और फिर आपको अलग-अलग कमरे मिलेंगे जहाँ लोग विभिन्न देवताओं की पूजा कर सकते हैं।

  1. श्री सुदर्शनजी
  2. श्री नरसिम्हाजी
  3. भगवान वेंकटेश्वर (तिरुपति बालाजी)
  4. श्री वेणुगोपालजी
  5. श्री अलवर सानिध्य
  6. श्री रामानुजाचार्य स्वामीजी के साथ श्री नम्मालवर (श्री शतकोप स्वामीजी), श्री नाथमुनि स्वामीजी, श्री मधुरकवि अलवर श्री रंगदिक स्वामीजी (मंदिर के संस्थापक), श्री यमुनाचार्य स्वामीजी (अलवंदर), श्री कांचीपुरी स्वामीजी।

 

Vishram Ghat Mathura 2024

Vishram Ghat

Vishram Ghat Mathura:-

Vishram Ghat Mathura, उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है, यह घाट द्वारिकाधीश मन्दिर से 30 मीटर की दूरी पर, नया बाज़ार में है। मथुरा के 25 घाटों में से यह एक प्रमुख घाट है। विश्राम घाट के उत्तर में 12 और दक्षिण में 12 घाट है। Vishram Ghat पर अनेक सन्तों ने तपस्या की है एवं अपना विश्राम स्थल बनाया है।  यमुना महारानी का एक अति सुंदर मंदिर Vishram Ghat पर स्थित है। यमुना महारानी जी की आरती विश्राम घाट से ही की जाती है। संध्या का समय विश्राम घाट पर और भी आध्यात्मिक माना जाता है। ऐसा माना गया है कि जब भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने मामा कंस का वध किया था। कंस के वध के बाद भगवान श्री कृष्ण जी और उनके भाई बलराम ने यहां आकर विश्राम किया था, तभी से इस घाट को विश्राम घाट नाम से जाना जाता है। विश्राम घाट सुन्दर व पवित्र मंदिरों के साथ बना हुआ है। इस घाट पर मुकुट मंदिर, राधा-दामोदर, मुरली मनोहर, नीलकण्डश्वर मंदिर, यमुना-कृष्णा मंदिर, लंगली हनुमान मंदिर, नरसिंह मंदिर आदि बने हुए हैं।

Vishram Ghat पर स्थित पवित्र यमुना नदी की आरती शाम के समय रोज आयोजित की जाती है, ऐसा कोई भी दिन नही जाता जब यहां आरती को आयोजन न होता हो। यहा की लोककथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि रंक्षा बंधन के त्यौहार पर बहनें इस घाट पर स्नान करके उनके भाईयों की लंबी उम्र की दुआ मांगते हैं।

 

Vishram Ghat Mathura

 

वृन्दावन के घाट:-

वृन्दावन में श्रीयमुना के तट पर अनेक घाट स्तिथ हैं। उनमें से प्रसिद्ध-प्रसिद्ध घाटों का उल्लेख कुछ इस प्रकार से है-

  1. श्री वराहघाट- वृन्दावन के दक्षिण-पश्चिम दिशा में पुराने यमुनाजी के तट पर श्री वराहघाट अवस्थित है। तट के ऊपर ही श्रीवराहदेव विराजमान हैं। पास में ही श्रीगौतम मुनि जी का आश्रम भी है।
  2. कालीयदमनघाट- इसका नामान्तर कालीयदह है। यह वराहघाट से लगभग कुछ दुरी पर उत्तर में प्राचीन यमुना के तट पर अवस्थित है। यहाँ के प्रसंग के सम्बन्ध में पहले उल्लेख किया गया है। कालीय को दमन कर तट भूमि में पहुचने पर श्री कृष्ण जी को ब्रजराज नन्द और ब्रजेश्वरी श्री यशोदा जी ने अपने आसुँओं से भर दिया था और वह रोते रोते कहने लगी की ‘मेरे लाला को कहीं कोई चोट तो नहीं पहुँची है।’ महाराज नन्द ने कृष्ण जी की मंगल कामना से ब्राह्मणों को अनेकानेक गायों का यहीं पर दान कर दिया था।
  3. सूर्यघाट- इसका नामान्तर आदित्यघाट भी है। गोपालघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित है। घाट के ऊपर वाले टीले को आदित्य टीला कहते हैं। इसी टीले के ऊपर श्रीसनातन गोस्वामी जी  के प्राणदेवता श्रीमदनमोहनजी का मन्दिर है। उसके सम्बन्ध में हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। यहीं पर प्रस्कन्दन तीर्थ भी है।
  4. युगलघाट- सूर्य घाट के उत्तर में युगलघाट अवस्थित है। इस घाट के ऊपर श्रीयुगलबिहारी का प्राचीन मन्दिर शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक और भी युगल किशोर का मन्दिर है। वह भी इसी प्रकार शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है।
  5. श्री बिहारघाट- युगलघाट के उत्तर में श्री बिहारघाट अवस्थित है। इस घाट पर श्री राधा कृष्ण जी युगल स्नान, जल विहार आदि क्रीड़ाएँ करते थे।
  6. श्री आंधेरघाट- युगलघाट के उत्तर में यह अंधेरघाट  अवस्थित हैं। इस घाट के उपवन में कृष्ण और गोपियाँ आँखमुदौवल की लीला करते थे। अर्थात् गोपियों के अपने करपल्लवों से अपने नेत्रों को ढक लेने पर श्रीकृष्ण आस-पास कहीं छिप जाते और गोपियाँ उन्हें ढूँढ़ती थीं। कभी श्रीकिशोरी जी इसी प्रकार छिप जातीं और सभी उनको ढूँढ़ते थे।
  7. इमलीतला घाट- आंधेरघाट के उत्तर में इमलीतलाघाट अवस्थित है। यहीं पर श्रीकृष्ण के समसामयिक इमली वृक्ष के नीचे महाप्रभु श्रीचैतन्य देव अपने वृन्दावन वास काल में प्रेमाविष्ट होकर हरिनाम करते थे। इसलिए इसको गौरांगघाट भी कहते हैं। इस लीला स्थान के सम्बन्ध में भी हम पहले उल्लेख कर चुके हैं।
  8. श्रृंगारघाट- इमलीतला घाट से कुछ पूर्व दिशा में यमुना तट पर श्रृंगारघाट अवस्थित है। यहीं बैठकर श्रीकृष्ण ने मानिनी श्रीराधिका का श्रृंगार किया था। वृन्दावन भ्रमण के समय श्रीनित्यानन्द प्रभुने इस घाट में स्नान किया था तथा कुछ दिनों तक इसी घाट के ऊपर श्रृंगारवट पर निवास किया था।
  9. श्री गोविन्दघाट- श्रृंगारघाट के पास ही उत्तर में गोविन्दघाट अवस्थित है। श्रीरासमण्डल से अन्तर्धान होने पर श्रीकृष्ण पुन: यहीं पर गोपियों के सामने आविर्भूत हुये थे।
  10. चीरघाट- कौतु की श्रीकृष्ण स्नान करती हुईं गोपिकुमारियों के वस्त्रों को लेकर यहीं कदम्ब वृक्ष के ऊपर चढ़ गये थे। चीर का तात्पर्य वस्त्र से है। पास ही कृष्ण ने केशी दैत्य का वध करने के पश्चात् यहीं पर बैठकर विश्राम किया था। इसलिए इस घाटका दूसरा नाम चयनघाट भी है। इसके निकट ही झाडूमण्डल दर्शनीय है।
  11. श्री भ्रमरघाट – चीरघाट के उत्तर में ही भ्रमरघाट स्थित है। जब किशोर-किशोरी यहाँ क्रीड़ा विलास करते थे, उस समय दोनों के अंग सौरभ से भँवरे उन्मत्त होकर गुंजार करने लगते थे। भ्रमरों के कारण इस घाट का नाम भ्रमरघाट है।
  12. श्री केशीघाट – श्रीवृन्दावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमरघाट के उत्तर में ही केशीघाट प्रसिद्ध घाट विराजमान है।
  13. धीरसमीरघाट – श्रीवृन्दावन की उत्तर-दिशा में केशीघाट से पूर्व दिशा में पास ही धीरसमीरघाट है। श्रीराधाकृष्ण युगल का विहार देखकर उनकी सेवा के लिए समीर भी सुशीतल होकर धीरे-धीरे प्रवाहित होने लगा था।
  14. श्री राधाबागघाट – वृन्दावन के पूर्व में राधाबागघाट अवस्थित है।
  15. श्री पानीघाट – पानीघाट से ही गोपियों ने यमुना को पैदल पारकर महर्षि दुर्वासा को सुस्वादु अन्न भोजन कराया था।
  16. आदिबद्रीघाट – पानीघाट से कुछ दक्षिण में आदिबद्रीघाट अवस्थित है। यहाँ श्रीकृष्ण ने गोपियों को आदिबद्री नारायण के दर्शन कराये थे।
  17. श्री राजघाट – आदि-बद्रीघाट के दक्षिण में तथा वृन्दावन की दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राचीन यमुना के तट पर ही राजघाट है। यहाँ कृष्ण जी नाविक बनकर सखियों के साथ श्रीमती राधिका को यमुना पार कराते थे। यमुना के बीच में कौतुकी कृष्ण नाना प्रकार के बहाने बनाकर जब वि करने लगते, उस समय गोपियाँ महाराजा कंस का भय दिखलाकर उन्हें जल्दी से यमुना पार करने के लिए कहती थीं। इसलिए इसका नाम राजघाट प्रसिद्ध है।

Vishram Ghat Mathura

 

इन घाटों के अतिरिक्त वृन्दावन कथा नामक पुस्तक में और भी 14 घाटों का उल्लेख है-

(1)महानतजी घाट (2) नामाओवाला घाट (3) प्रस्कन्दन घाट (4) कडिया घाट (5) धूसर घाट (6) नया घाट (7) श्रीजी घाट (8) विहारी जी घाट (9) धरोयार घाट (10) नागरी घाट (11) भीम घाट (12) हिम्मत बहादुर घाट (13) चीर या चैन घाट (14) हनुमान घाट।

Pagal Baba Mandir 2024

Pagal Baba Mandir Vrindavan

Pagal Baba Mandir

 

Pagal Baba Mandir Vrindavan

वृन्दावन के सबसे खूबसूरत मंदि

रों में से एक है Pagal Baba Mandir। मथुरा वृन्दावन रोड पर स्थित, पागल बाबा मंदिर उन सभी लोगों को पवित्र और दिव्य अनुभूति प्रदान करता है जो इष्टदेव भगवान श्री कृष्ण जी से आशीर्वाद लेने के लिए यहां आते हैं। यह एक ऐंसा मंदिर  है, जहां आप कुछ समय के लिए खुद को भौतिक दुनिया से अलग कर सकते हैं और कान्हा जी की भक्ति और पूजा में खुद को लीन करके अपने मन को भय मुक्त और तसल्ली प्रदान कर सकते हैं। Pagal Baba Mandir 221 फीट ऊंचा सफेद संगमरमर के पत्थरों से बना हुआ है, जो वृन्दावन में एक आकर्षण का केंद्र बन चूका है। इस भव्य मंदिर को लीलाधाम मंदिर के नाम से भी जाना गया है। श्री राधा-कृष्ण जी की लीला स्थली वृंदावन में लीलाधाम मंदिर (पागल बाबा का मंदिर) की स्थापना 1969 में हुई थी। वर्तमान में मंदिर के मुख्य ट्रस्टी जिला न्यायाधीश और जिलाधिकारी हैं। सफेद पत्थरों से बने इस 9 मंजिल के मंदिर की सुंदरता अत्यधिक आकर्षित है। इस मंदिर की

चौड़ाई लगभग 150 फीट है।

Pagal Baba Mandir, वृन्दावन का इतिहास

इस मंदिर की उत्पत्ति के पीछे एक अत्यंत दिलचस्प कहानी है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण था जो श्री बांके बिहारी जी का सच्चा भक्त था और वह पूरी श्रद्धा और खुशी के साथ उनका नाम जपता था।

एक दिन उसे कुछ पैसों की जरूरत पड़ी। इसलिए, वह पैसे माँगने के लिए साहूकार के पास गया। और उसकी मांग के अनुसार साहूकार ने उसे आवश्यक धन दे दिया और उसे 12 किश्तों में लौटाने को कहा। ब्राह्मण निर्धारित शर्तों के लिए सहमत हो गया और घर वापस चला गया। इसके बाद वह हर महीने व्रयाज के साथ उसे पैसे लौटाने लगा।

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन तभी उसे साहूकार से नोटिस मिला कि जिसमे लिखा था की उसने अभी तक कर्ज नहीं चुकाया है और अब उसे ब्याज सहित सारी रकम लौटा देनी चाहिए। नोटिस पढ़ने के बाद, वह साहूकार के पास गया और उसने चीजों को सुलझाने का प्रयास किया। लेकिन साहूकार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था और मामला अदालत तक पहुंच गया।

सुनवाई के दौरान ब्राह्मण ने जज को सारी बात ब

ताई और कहा कि एक किस्त को छोड़कर उसने साहूकार का सारा पैसा व्याज सहित चुका दिया है। अदालत के न्यायाधीश ने ब्राह्मण से पूछा, “क्या कोई गवाह है जो उसके विरुद्ध खड़ा हो और यह साबित कर सके कि वह जो कह रहा है वह सच है?” उन्होंने कुछ देर सोचा और अंत में उत्तर दिया, “हां, जज साहब एक व्यक्ति है जो मेरी ओर से गवाही देगा. जज ने ब्राह्मण से पूछा, और वह कोन हैं? –  ब्राह्मण उत्तर दिया  ”वह श्री बांके बिहारी जी हैं।”

यह सुनकर अदालत ,में बैठे सभी लोग हैरान रह गए, लेकिन जज ने ब्राह्मण की खातिर उनका पता पूछा और श्री बांके बिहारी जी मंदिर को नोटिस भेज दिया। कानूनी कार्यवाही के अनुसार, सभी लोग अदालत की अगली तारीख पर गवाह के आने का इंतजार कर रहे थे। और सभी को आश्चर्य हुआ, एक बूढ़े आदमी ने आकर जज को बताया कि जब वह साहूकार को हर महीने की किस्त दे रहा था तो मैं उसके साथ होता था। .

बूढ़े व्यक्ति ने एक दम सही तारीखें बताईं

जिस दिन ब्राह्मण ने पैसे लोटाये थे और न्यायाधीश से साहूकार के बहीखाते की जांच करने के लिए कहा। जज ने वैसा ही किया और उसकी सारी बातें सच निकलीं। इतना सब होने के बाद ब्राह्मण को निर्दोष घोषित कर पूरे निष्ठा और सम्मान के साथ अदालत से बाइज्जत बरी कर दिया।

अदालत में जो कुछ हुआ उसके बाद न्यायाधीश वास्तव में हैरान रह गया और अपनी परेशानी दूर करने के लिए उसने ब्राह्मण से उस बूढ़े व्यक्ति के बारे में पूछा। तब ब्राह्मण ने कहा, “वह मेरे बांके बिहारी जी थे। वह मुझे और उस पर मेरे अंध विश्वास को बचाने आये थे।” जज ने आगे पूछा, “वह कहां रहते हैं?” इस पर ब्राह्मण ने कहा कि वह हर जगह है, तुममें, मुझमें, सबमें।

यह सुनकर जल्द ही, न्यायाधीश ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और यहां तक ​​कि वह अपने परिवार को भी बांके बिहारी जी से मिलने के लिए छोड़ कर चल दिए। कई वर्षों की भागदौड़ के बाद, वह अंत में एकमात्र ठाकुर जी की तलाश में वृन्दावन पहुँचे। वह बांके बिहारी जी का पता जानने के लिए लगातार इधर-उधर घुमने लगे थे और जिसकी बजह से कुछ ही समय में लोग उन्हें “पागल बाबा” कहने लगे।

भक्तों की सहायता से उन्होंने बांके बिहारी जी का मंदिर बनवाया और वह मंदिर वृन्दावन में Pagal Baba Mandir के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

Pagal Baba Mandir

क्या है Pagal Baba Mandir की टाइमिंग? 

 गर्मी
         सुबह                 समय      शाम                समय
         दर्शन      5:00 am to 11:30 am    दर्शन      3:00 pm to 9:00 pm
 सर्दी
         सुबह                 समय      शाम                समय
         दर्शन      6:00 am to 12:00 pm    दर्शन       3:30 pm to 8:30 pm

Prem Mandir Vrindavan 2024

Prem Mandir Vrindavan

Prem Mandir Vrindavan

Prem Mandir Vrindavan

Prem Mandir Vrindavan भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में मथुरा जिले के पास, वृन्दावन शहर में वास्तव में एक शानदार मंदिर जैसा है। जगद्गुरु कृपालु महाराज ने इसे भगवान कृष्ण और राधा रानी के मंदिर के रूप में बनवाया था। उन्होंने इस पर 11 साल तक काम करने और लगभग 100 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद 17 फरवरी को इसे खोला। उन्होंने फैंसी इटालियन कैरारा संगमरमर का इस्तेमाल किया और राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एक हजार कारीगरों की मदद ली। कृपालुजी महाराज ने 14 जनवरी, 2001 को इसकी आधारशिला रखी थी। यह अद्भुत प्रेम मंदिर सफेद इतालवी कैरारा संगमरमर से बना है और यह राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर छटीकरा से लगभग 3 किलोमीटर दूर भक्तिवेदांत स्वामी मार्ग पर है। यह प्राचीन भारतीय मूर्तिकला का एक महान उदाहरण है। जीवन के लिए।

Prem Mandir का इतिहास

Prem Mandir Vrindavan

पूरा मंदिर 54 एकड़ के विशाल भूखंड पर बना है, जिसकी ऊंचाई 125 फीट, लंबाई 122 फीट और चौड़ाई 115 फीट है। अंदर, आपको फव्वारे और राधा-कृष्ण और अन्य दिव्य कहानियों के सुंदर दृश्य मिलेंगे, जो सभी सुंदर बगीचों से घिरे हुए हैं। यह मंदिर प्रेम का प्रतीक है, इसके दरवाजे हर वर्ग के लोगों का स्वागत करते हैं। मुख्य प्रवेश द्वार पर आठ मोर-नक्काशीदार तोरणद्वार हैं, और बाहरी दीवारें राधा-कृष्ण के साहसिक कार्यों की नक्काशी से सजी हैं। अंदर, आपको राधा कृष्ण और कृपालुजी महाराज के और भी अधिक चित्रण मिलेंगे। मंदिर 94 स्तंभों पर आधारित है, जिनमें से प्रत्येक को राधा-कृष्ण की विभिन्न कहानियों से सजाया गया है। गोपियों की मूर्तियों वाले स्तंभ विशेष रूप से जीवंत हैं। मंदिर में संगमरमर के पत्थरों पर लिखे राधा गोविंद गीतों के साथ प्राचीन भारतीय वास्तुकला की आश्चर्यजनक पच्चीकारी और नक्काशी भी दिखाई देती है। और मंदिर परिसर में गोवर्धन पर्वत की अविश्वसनीय झांकी देखना न भूलें।

Prem Mandir Vrindavan का समय

प्रेम मंदिर के खुलने का समय शाम 5.30 बजे है और यह रात 8.30 बजे बंद हो जाता है। मंदिर के अंदर दिए गए कार्यक्रम के अनुसार अलग-अलग आरती की जाती है। आरती के समय मंदिर में काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। आप मंदिर में निःशुल्क प्रवेश कर सकते हैं, कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। पूरे मंदिर का भ्रमण करने में कम से कम दो घंटे का समय लगता है।

Prem Mandir Vrindavan

Prem Mandir की बनावट:-

प्रेम मंदिर वृंदावन की बाहरी दीवारों पर श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं को शिल्पकारों ने मूर्त रूप दिया गया है। ये मंदिर वृंदावन की एक अद्वितीय आध्यात्मिक संरचना है.

  • इस पवित्र अभयारण्य की दीवारों की मोटाई 3.25 फीट है, जो स्थिरता और भव्यता दोनों सुनिश्चित करती है। इसके अलावा, गर्भगृह की दीवार 8 फीट की प्रभावशाली है, जो विशाल शिखर, देदीप्यमान स्वर्ण कलश और राजसी ध्वज के लिए एक मजबूत नींव के रूप में काम करती है जो गर्व से मंदिर के शिखर को सुशोभित करती है।
  • मंदिर के भव्य ध्वज को शामिल करने के साथ, इसकी विशाल ऊंचाई प्रभावशाली 125 फीट तक पहुंच जाती है। 190 फीट लंबाई और 128 फीट चौड़ाई के विशाल विस्तार में फैले इस मंदिर में एक विशाल मंच है जो सावधानीपूर्वक निर्मित परिक्रमा पथ से सुसज्जित है।
  • यह इस मार्ग पर है कि कोई भी 48 स्तंभों की लुभावनी सुंदरता को देखकर आश्चर्यचकित हो सकता है, जिनमें से प्रत्येक मंदिर की बाहरी दीवारों पर श्री कृष्ण और राधा की दिव्य लीलाओं को खूबसूरती से चित्रित करता है।
  • इस अद्वितीय आध्यात्मिक संरचना के बाहरी परिसर के भीतर, 84 स्तंभ खड़े हैं, जिनमें से प्रत्येक में श्री कृष्ण की मनमोहक लीलाओं को दर्शाया गया है, जैसा कि श्रीमद्भगवद गीता के श्रद्धेय ग्रंथों में खूबसूरती से वर्णित है।
  • यह इन पवित्र दीवारों के भीतर है कि पवित्र पाठ से सोच-समझकर निकाले गए पैनल, इस असाधारण मंदिर में व्याप्त गहन शिक्षाओं और दिव्य सार के प्रमाण के रूप में काम करते हैं। वृन्दावन के मध्य में, प्रेम मंदिर वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति के रूप में खड़ा है, जो इसके पवित्र मैदानों में कदम रखने वाले सभी लोगों के दिलों और आत्माओं को मंत्रमुग्ध कर देता है।

Banke Bihari Mandir 2024

Banke Bihari Mandir

Banke Bihari Mandir :- 

Banke Bihari Mandir भारत के उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के वृंदावन धाम में रमण रेती पर स्थित है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।  श्री बांके बिहारी जी कृष्ण जी का ही एक रूप है जो इस मंदिर में प्रदर्शित किया गया है। इसका निर्माण स्वामी हरिदास ने सन 1860 में  करवाया था। हर वर्ष इस मंदिर में श्रद्धालु अधिक संख्या में बांके बिहारी जी के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर से कई ऐसे रहस्य जुड़े हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। बांके बिहारी जी के दर्शन श्रद्धालुओं को हमेशा टुकड़ों में ही कराए जाते हैं। ब्रजवासी प्यार से इन्हें ‘बिहारी जी’ और ‘ठाकुर जी’ कहकर बुलाते हैं।

 

Banke Bihari Mandir

Banke Bihari Mandir वृन्दावन में करने लायक चीज़ें 

श्री बांके बिहारी जी मंदिर वृन्दावन में सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है। यह प्रिय भगवान के प्रति अटूट आस्था और भक्ति का प्रतिनिधित्व है। इस सदियों पुराने मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त श्री बांके बिहारी जी की पूजा करने आते हैं, जिन्हें ब्रजवासी प्यार से ‘बिहारी जी’ और ‘ठाकुर जी’ कहकर बुलाते हैं।

मंदिर की कुछ प्रमुख विशेषताएं जिनका आप आनंद ले सकते हैं वे इस प्रकार हैं:

1. श्री कृष्ण जन्माष्टमी:  श्री कृष्ण जन्माष्टमी वह दिन है जब भगवान श्री कृष्ण जी इस धरती पर अवतरित हुए थे। यह भाद्रपद महीने (हिन्दू कैलेंडर) के प्रथम पक्ष की आठवी तिथि को मनाया जाता है। बिहारी जी के मंदिर में मंगला आरती भी की जाती है और बिहारी जी को जगमोहन में विराजमान किया जाता है। भक्तों के लिए दर्शन रात करीब 2 बजे खुलते हैं और सुबह 6 बजे तक जारी रहते हैं।

इस गौरवशाली दिन को सभी भक्त बहुत ज्यादा उत्साह के साथ मनाते हैं।

2. हरियाली तीज या झूलन यात्रा: हरियाली तीज त्योहार के दौरान, जिसे आमतौर पर झूलन यात्रा के रूप में हम सभी जानते हैं, श्री बांके बिहारी जी को चांदी और सुनहरे झूलों (हिंडोला) में बैठाया जाता है। इस अवसर पर, बिहारी जी अपने गर्भगृह से बाहर निकलकर प्रांगण में झूले पर बैठते हैं, जहाँ सभी भक्तों को हरे वस्त्र में सजे अपने प्रिय ठाकुर जी की एक झलक देखने को मिलती है।

3. होली: बांके बिहारी जी मंदिर में, होली का त्योहार बहुत ज्यादा उत्साह और प्रेम के साथ मनाया जाता है और यह त्यौहार कई दिनों तक जारी रहता है। उत्सव के दौरान, श्री बांके बिहारी जी जगमोहन में बनाई गई चांदी की कुटिया में रहते हैं, जिससे भक्तों को भगवान के करीब से दर्शन मिलते हैं। उन्हें सफेद वस्त्र में बैठाया जाता है, जो दिन के अंत तक सभी रंगों में बदल जाता है। क्यूंकि भक्त तथा पुजारियों द्वारा उन पर छिड़के गए रंगीन पानी से उनके वस्त्र भीग जाते हैं।

4. धुलंडी: होलिका दहन के अगले दिन को धुलंडी के नाम से जाना जाता है। यह वह दिन होता है जब पूरे देश में होली मनाई जाती है और सभी उम्र के लोग रंगों के साथ मस्ती करते हैं। हालाँकि, इस दिन बिहारी जी होली नहीं खेलते हैं और वह एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होते हैं, और भक्तों को रंग से खेलते हुए देखते हैं। इस दिन भक्त अपने प्रिय भगवान को रंग चढ़ाते हैं। इस दिन लठमार होली भी खेली जाती है, (लठमार होली होली समारोह का एक और प्रमुख आकर्षण है)।

5. राधाष्टमी: श्रीमती राधारानी भाद्रपद माह (हिन्दू कैलेंडर) के आठवें दिन श्री विष्णुभानु जी की बेटी के रूप में अवतरित हुईं। बांके बिहारी जी मंदिर में राधा रानी जी का जन्मदिन सदैव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर को शानदार ढंग से सजाया जाता है और प्रांगण में रास लीला का मंचन किया जाता है। आप इस ‘वीणी गुठन’ लीला का अच्छी तरह से साल में केवल इसी समय आनंद ले सकते हैं। शाम को, कोई भी भव्य जुलूस, चाव का हिस्सा बन सकता है, जिसमें भगवान कृष्ण इस शुभ दिन पर स्वामी हरिदास जी को बधाई देने जाते हैं।

Banke Bihari Mandir में पर्दा लगाने का रहस्य

एक कथा के अनुसार, एक बार एक भक्त बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए मंदिर आए. तब वह टकटकी लगाकर भगवान बांके बिहारी जी की मूर्ति को निहारने लगे और बिहारी जी की भक्ति में लीन हो गए, तब भगवान उस भक्त के प्रेम से प्रसन्न  होकर उनके साथ ही चल दिए. जब पंडित जी ने मंदिर में देखा कि भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्ति नहीं है, तो उन्होंने भगवान से बड़ी मनुहार की और वापस मंदिर में चलने को कहा और तब बिहारी जी वापस मंदिर आये. तब से ही बांके बिहारी जी की मूर्ति पर बार-बार पर्दा लगाने की परंपरा चली आ रही है.

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Banke Bihari Mandir  वृन्दावन दर्शन एवं आरती का समय :

 आरती  गर्मी (होली के बाद)  सर्दी (दिवाली के बाद)
 दर्शन का समय  प्रातः 07:45 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक  प्रातः 08:45 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक
 श्रृंगार आरती  प्रातः 08:00  प्रातः 09:00 बजे
 राजभोग  सुबह 11:00 से 11:30 बजे  दोपहर 12:00 बजे से 12:30 बजे तक
 राजभोग एवं समापन  दोपहर 12:00 बजे  01:00 बजे
 दर्शन का समय  शाम 05:30 से 09:30 बजे तक  04:30 से 08:30 बजे तक
 शयन भोग  शाम 08:30 बजे से 9:00 बजे  शाम 07:30 बजे से 8:00 बजे तक
 शयन आरती एवं समापन  रात्रि 09:30 बजे   रात्रि 08:30 बजे

 

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