Vishram Ghat Mathura:-
Vishram Ghat Mathura, उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है, यह घाट द्वारिकाधीश मन्दिर से 30 मीटर की दूरी पर, नया बाज़ार में है। मथुरा के 25 घाटों में से यह एक प्रमुख घाट है। विश्राम घाट के उत्तर में 12 और दक्षिण में 12 घाट है। Vishram Ghat पर अनेक सन्तों ने तपस्या की है एवं अपना विश्राम स्थल बनाया है। यमुना महारानी का एक अति सुंदर मंदिर Vishram Ghat पर स्थित है। यमुना महारानी जी की आरती विश्राम घाट से ही की जाती है। संध्या का समय विश्राम घाट पर और भी आध्यात्मिक माना जाता है। ऐसा माना गया है कि जब भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने मामा कंस का वध किया था। कंस के वध के बाद भगवान श्री कृष्ण जी और उनके भाई बलराम ने यहां आकर विश्राम किया था, तभी से इस घाट को विश्राम घाट नाम से जाना जाता है। विश्राम घाट सुन्दर व पवित्र मंदिरों के साथ बना हुआ है। इस घाट पर मुकुट मंदिर, राधा-दामोदर, मुरली मनोहर, नीलकण्डश्वर मंदिर, यमुना-कृष्णा मंदिर, लंगली हनुमान मंदिर, नरसिंह मंदिर आदि बने हुए हैं।
Vishram Ghat पर स्थित पवित्र यमुना नदी की आरती शाम के समय रोज आयोजित की जाती है, ऐसा कोई भी दिन नही जाता जब यहां आरती को आयोजन न होता हो। यहा की लोककथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि रंक्षा बंधन के त्यौहार पर बहनें इस घाट पर स्नान करके उनके भाईयों की लंबी उम्र की दुआ मांगते हैं।
वृन्दावन के घाट:-
वृन्दावन में श्रीयमुना के तट पर अनेक घाट स्तिथ हैं। उनमें से प्रसिद्ध-प्रसिद्ध घाटों का उल्लेख कुछ इस प्रकार से है-
- श्री वराहघाट- वृन्दावन के दक्षिण-पश्चिम दिशा में पुराने यमुनाजी के तट पर श्री वराहघाट अवस्थित है। तट के ऊपर ही श्रीवराहदेव विराजमान हैं। पास में ही श्रीगौतम मुनि जी का आश्रम भी है।
- कालीयदमनघाट- इसका नामान्तर कालीयदह है। यह वराहघाट से लगभग कुछ दुरी पर उत्तर में प्राचीन यमुना के तट पर अवस्थित है। यहाँ के प्रसंग के सम्बन्ध में पहले उल्लेख किया गया है। कालीय को दमन कर तट भूमि में पहुचने पर श्री कृष्ण जी को ब्रजराज नन्द और ब्रजेश्वरी श्री यशोदा जी ने अपने आसुँओं से भर दिया था और वह रोते रोते कहने लगी की ‘मेरे लाला को कहीं कोई चोट तो नहीं पहुँची है।’ महाराज नन्द ने कृष्ण जी की मंगल कामना से ब्राह्मणों को अनेकानेक गायों का यहीं पर दान कर दिया था।
- सूर्यघाट- इसका नामान्तर आदित्यघाट भी है। गोपालघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित है। घाट के ऊपर वाले टीले को आदित्य टीला कहते हैं। इसी टीले के ऊपर श्रीसनातन गोस्वामी जी के प्राणदेवता श्रीमदनमोहनजी का मन्दिर है। उसके सम्बन्ध में हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। यहीं पर प्रस्कन्दन तीर्थ भी है।
- युगलघाट- सूर्य घाट के उत्तर में युगलघाट अवस्थित है। इस घाट के ऊपर श्रीयुगलबिहारी का प्राचीन मन्दिर शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक और भी युगल किशोर का मन्दिर है। वह भी इसी प्रकार शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है।
- श्री बिहारघाट- युगलघाट के उत्तर में श्री बिहारघाट अवस्थित है। इस घाट पर श्री राधा कृष्ण जी युगल स्नान, जल विहार आदि क्रीड़ाएँ करते थे।
- श्री आंधेरघाट- युगलघाट के उत्तर में यह अंधेरघाट अवस्थित हैं। इस घाट के उपवन में कृष्ण और गोपियाँ आँखमुदौवल की लीला करते थे। अर्थात् गोपियों के अपने करपल्लवों से अपने नेत्रों को ढक लेने पर श्रीकृष्ण आस-पास कहीं छिप जाते और गोपियाँ उन्हें ढूँढ़ती थीं। कभी श्रीकिशोरी जी इसी प्रकार छिप जातीं और सभी उनको ढूँढ़ते थे।
- इमलीतला घाट- आंधेरघाट के उत्तर में इमलीतलाघाट अवस्थित है। यहीं पर श्रीकृष्ण के समसामयिक इमली वृक्ष के नीचे महाप्रभु श्रीचैतन्य देव अपने वृन्दावन वास काल में प्रेमाविष्ट होकर हरिनाम करते थे। इसलिए इसको गौरांगघाट भी कहते हैं। इस लीला स्थान के सम्बन्ध में भी हम पहले उल्लेख कर चुके हैं।
- श्रृंगारघाट- इमलीतला घाट से कुछ पूर्व दिशा में यमुना तट पर श्रृंगारघाट अवस्थित है। यहीं बैठकर श्रीकृष्ण ने मानिनी श्रीराधिका का श्रृंगार किया था। वृन्दावन भ्रमण के समय श्रीनित्यानन्द प्रभुने इस घाट में स्नान किया था तथा कुछ दिनों तक इसी घाट के ऊपर श्रृंगारवट पर निवास किया था।
- श्री गोविन्दघाट- श्रृंगारघाट के पास ही उत्तर में गोविन्दघाट अवस्थित है। श्रीरासमण्डल से अन्तर्धान होने पर श्रीकृष्ण पुन: यहीं पर गोपियों के सामने आविर्भूत हुये थे।
- चीरघाट- कौतु की श्रीकृष्ण स्नान करती हुईं गोपिकुमारियों के वस्त्रों को लेकर यहीं कदम्ब वृक्ष के ऊपर चढ़ गये थे। चीर का तात्पर्य वस्त्र से है। पास ही कृष्ण ने केशी दैत्य का वध करने के पश्चात् यहीं पर बैठकर विश्राम किया था। इसलिए इस घाटका दूसरा नाम चयनघाट भी है। इसके निकट ही झाडूमण्डल दर्शनीय है।
- श्री भ्रमरघाट – चीरघाट के उत्तर में ही भ्रमरघाट स्थित है। जब किशोर-किशोरी यहाँ क्रीड़ा विलास करते थे, उस समय दोनों के अंग सौरभ से भँवरे उन्मत्त होकर गुंजार करने लगते थे। भ्रमरों के कारण इस घाट का नाम भ्रमरघाट है।
- श्री केशीघाट – श्रीवृन्दावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमरघाट के उत्तर में ही केशीघाट प्रसिद्ध घाट विराजमान है।
- धीरसमीरघाट – श्रीवृन्दावन की उत्तर-दिशा में केशीघाट से पूर्व दिशा में पास ही धीरसमीरघाट है। श्रीराधाकृष्ण युगल का विहार देखकर उनकी सेवा के लिए समीर भी सुशीतल होकर धीरे-धीरे प्रवाहित होने लगा था।
- श्री राधाबागघाट – वृन्दावन के पूर्व में राधाबागघाट अवस्थित है।
- श्री पानीघाट – पानीघाट से ही गोपियों ने यमुना को पैदल पारकर महर्षि दुर्वासा को सुस्वादु अन्न भोजन कराया था।
- आदिबद्रीघाट – पानीघाट से कुछ दक्षिण में आदिबद्रीघाट अवस्थित है। यहाँ श्रीकृष्ण ने गोपियों को आदिबद्री नारायण के दर्शन कराये थे।
- श्री राजघाट – आदि-बद्रीघाट के दक्षिण में तथा वृन्दावन की दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राचीन यमुना के तट पर ही राजघाट है। यहाँ कृष्ण जी नाविक बनकर सखियों के साथ श्रीमती राधिका को यमुना पार कराते थे। यमुना के बीच में कौतुकी कृष्ण नाना प्रकार के बहाने बनाकर जब वि करने लगते, उस समय गोपियाँ महाराजा कंस का भय दिखलाकर उन्हें जल्दी से यमुना पार करने के लिए कहती थीं। इसलिए इसका नाम राजघाट प्रसिद्ध है।
इन घाटों के अतिरिक्त वृन्दावन कथा नामक पुस्तक में और भी 14 घाटों का उल्लेख है-
(1)महानतजी घाट (2) नामाओवाला घाट (3) प्रस्कन्दन घाट (4) कडिया घाट (5) धूसर घाट (6) नया घाट (7) श्रीजी घाट (8) विहारी जी घाट (9) धरोयार घाट (10) नागरी घाट (11) भीम घाट (12) हिम्मत बहादुर घाट (13) चीर या चैन घाट (14) हनुमान घाट।